dhobikikutti: earthen diya (Default)
[personal profile] dhobikikutti
A friend forwarded me this poem by Kaifi Azmi on the Babri Masjid demolitions. I suspect it was originally written in Urdu, so if anyone has the original, or can retransliterate it back, let me know and I'll edit it into the main post. (I suspect there are a few typos in the Devnagari transliteration I was forwarded.) Likewise, a translation, which I'm too lazy to attempt.

दूसरा बनवास

राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
राक्स्से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
पियार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, यह जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर |

तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पाँव सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पाँव धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम यह कहते हुए आपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे |

-- कैफ़ी आज़्मी

Roman transliteration )

Syndicate

RSS Atom

November 2018

S M T W T F S
    123
45678910
111213141516 17
18192021222324
252627282930 

Expand Cut Tags

No cut tags
Page generated Jun. 15th, 2025 07:20 am
Powered by Dreamwidth Studios